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बचपन की याद

बचपन का वो जमाना,था कितना मासूम,था कितना सुहाना...पता नही क्यूँ पर बचपन आज तुम बहुत याद आ रहे हो , काश कोई ऐसा दरवाजा होता जिसके उस तरफ जाते ही तुम वापिस आ जाते , ज़िंदगी की आपा धापी में तुम कहीं बहुत पीछे छूट गये , पर आज मन कर रहा है की एक बार फिर बचपन वापिस मिल जाए। तुम थे तो कई गम नहीं होता था हर परेशानी सूरज के अस्त होने के साथ चली जाती थी। वक्त की इस रेस में हम सब कब इतने आगे निकल आए कि वो बचपन जिसे अब हम सबसे ज्यादा याद करते हैं कहीं खो सा गया।सच, कितना मीठा सा था वो बचपन।


तुम थे तो मुहल्ले की आंटी के घर के शीशे को तोड़ना भी अपराध नहीं माना जाता था और आज अगर गलती से भी एक कांच का ग्लास भी टूट जाए तो अपराधी हो जाते हैं। तब इतनी पाधापा नहीं था…तुम भी स्वच्छंद थे और मैं भी स्वतंत्र था। बचपन किसी कपोत की उड़ान जैसा ही तो होता है, निर्मल…डरा सा, सहमा सा, बहुत कुछ देख लेने की चाहत, छोटी इच्छाएं, बड़ी सी भावनाएं।

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141 Comments

Gulzar Asim

24-Oct-2021 06:31 PM

بہت اعلیٰ بچپن کی یادوں کو جس طرح خوبصورتی سے بیان کیا زبردست

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Sunanda Aswal

18-Oct-2021 10:25 PM

बहुत सुंदर

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Niraj Pandey

15-Oct-2021 06:12 PM

बहुत ही बेहतरीन

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